राजभाषा (हिंदी) प्रकोष्ठ के नाम से ऐसा लगता है कि यह प्रकोष्ठ केवल हिंदी के लिए कार्य करता होगा, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। राजभाषा अधिनियम की धारा 3.3 के अनुसार कुछ दस्तावेजों को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में जारी किया जाना अनिवार्य है। स्पष्ट है कि जब तक हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का कार्यसाधक ज्ञान नहीं होगा तब तक राजभाषा नियमों का अनुपालन संभव ही नहीं है।
कार्यसाधक ज्ञान का मतलब है कि हम दोनों भाषाओं में लिख, पढ़ सकें तथा उन्हें सरलता से समझ सकें । यही हिंदी प्रकोष्ठ का अंतिम लक्ष्य है। संविधान में हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया गया है। साथ ही राज्यों को यह अधिकार भी दिया गया कि वे राज्य में प्रयोग होने वाली अन्य भारतीय भाषा या भाषाओं को अपनी राजभाषा बना सकते हैं। हिंदी प्रकोष्ठ का उद्देश्य है कि सभी लोग सरकार की भाषा नीति और राजभाषा नियमों को जानें तथा संस्थान के किसी भी कार्य में भाषा संबंधी कोई रुकावट न आने पाए।
हमारा प्रयास है कि हमारी पहचान 'संस्थान मित्र ' के रूप में स्थापित हो। हम लोग भाषाएं पढ़ें, सीखें, राजभाषा नियमों का अनुपालन करें परंतु एक आनंद के साथ। एक नई चीज सीखने के उत्साह के साथ। एक अपनत्व और बंधुत्व की भावना के साथ। हमारा कार्य आपके तनाव को बढाने का नहीं बल्कि उसे कम करने का है। हम आपके किसी भी रचनात्मक सुझाव का न केवल स्वागत करेंगे बल्कि उसको कार्यान्वित किए जाने का ईमानदारी पूर्ण प्रयास भी करेंगे ।
यह वेब पृष्ठ इसी लिए बनाया गया है कि आपको हिंदी प्रकोष्ठ और इसकी गतिविधियों के बारे में सारी जानकारी एक ही स्थान पर प्राप्त हो सके, जिन्हें आप जानें और हमसे जुड़ें। हम ऐसे अभिनव प्रयोगों को करते रहने की इच्छा लेकर आगे बढ़ रहे हैं जो हमारे इन उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो सकें। आपका साथ और विश्वास हमारा संबल होगा ।
फोटो | नाम | विभाग | समयावधि |
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प्रोफेसर मनोज त्रिपाठी | विद्युत अभियांत्रिकी विभाग | 15 अक्टूबर, 2019 से 18 जुलाई, 2022 तक | |
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प्रोफेसर नागेंद्र कुमार | मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग | जून, 2015 से 14 अक्टूबर, 2019 तक |
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प्रोफेसर इंद्रमणि मिश्र (सेवानिवृत्त) | रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग | नवम्बर, 2006 से मई, 2015 तक |
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प्रोफेसर आशा कपूर (सेवानिवृत्त) | मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग | फरवरी, 2002 से अक्टूबर, 2006 तक |